अब की स्मृति
Updated: Jan 18
नीचे के कमरे में एक मोमबत्ती जलता छोड़ आया था लौटूंगा,
तो उसकी रोशनी में चार लाइनें पढ़ूँगा
लौटने से पहले ही मोमबत्ती बुझ चुकी थी, वे चार लाइनें मासूमियत की तरह मिट चुकी थीं
मेरे साथ इस तरह चलते हो तुम जैसे रेलगाड़ी की खिड़की से
झाँक रहे बच्चे के साथ-साथ चलता है चाँद
एक दिन मैं बाल्कनी में खड़ा हो गया आसमान की ओर अपना
रूमाल हिलाने लगा
जो लोग मुझे अलविदा कहे बिना चले गए
वे बहुत दूर से भी मेरा रूमाल पहचान लेंगे
मेरे रूमाल में अपने आँसू वे इस तरह छोड़ गए हैं
जैसे दिखे गए गुफाओं की दीवारों पर खुरचे हुए चित्र
ल्योतार कहता था, हर वाक्य एक अब होता है नहीं,
दरअसल वह अब की स्मृति होता है
