नही जाऊंगा तुमसे मिले बिना
दूसरों को क्या कहूँ
तुम ख़ुद
जो इतनी मुश्किलों से मिलती हो
मिलते ही झटपट फूल लेती हो
और जाने लगती हो एक नज़र देखकर
परिश्रमों को कुछ न्याय तो दो
मैं अंशुक का रंग तक नहीं जान पाता और तुम पाँव मोड़ लेती हो
सुनो!
मान सकता हूँ लजीली हो
और चुंबन के ख़्याल से ही तुम्हारी देह तपने लगती है
पर आलिंगन!
अनुभव की देह में कोई कंटक तो नहीं लगे
पैरों में पायल पहनने वाली!
इसे मेरा हठ समझो या दुस्साहस
मैं नहीं जाऊंगा गले मिले बिना
नहीं जाऊंगा
नहीं जाऊंगा
नहीं जाऊंगा।