बहुत दूर कितना दूर होता है।

"अगर ये दो बच्चे न होते तो अभी तेरे शहर में होती मैं सब छोड़ कर", कहाँ से आई उसे इतनी हिम्मत, गाँव में तो वो ठीक से अपने लिये कोई खिलौना भी नहीं मांग पाती थी माँ से और आज ये इतनी बड़ी बात कह रही है. मैंने जैसे ही उससे ये सुना, मुझे लगा कि कितना कमज़ोर हूँ मैं
उससे पहली बार कैसे मिला था मुझे नहीं पता, मगर मुझे वो पल याद है जब मुझे अपने ऊपर शर्म आ गयी थी. मैं शहर जा रहा था और उसी वक़्त छत से उड़ता हुआ एक काग़ज़ मेरे पाऊँ में आ गिरा. उठा कर देखा तो एक प्रेम पत्र था और साथ में थे 50 रुपए. लिखा था कि तेरे फोन में पैसे नहीं रहते न तो ये 50 रुपए डलवा लेना. उसे भनक तक नहीं थी कि फोन में पैसा तो था पर मेरे अंदर हिम्मत नहीं. मैं नहीं कर सकता था उससे वादे, उससे ब्याह, उससे प्रेम और इसलिए ही पैसों का बहाना बना कर फोन से दूर रहता था. मुझे याद है कि पहली बार उसने ही हिम्मत कर के मेरा हाथ पकड़ा था और मैं डर से काँप गया था. उस दिन पहला मौका था जब मुझे लगा कि हिम्मत जेंडर का नहीं प्रेम और चाह का विषय है. उसने जब जब मुझे बताया कि वो कितना प्रेम करती है तब तब मैं "दादी बुला रही है" का बहाना करके वहाँ से फरार हो गया.
कुछ दिन बाद फोन आना बंद हो गया, बस एक मेसेज आया, "शादी है 5 को, आ जाना वक़्त हो तो".
मैं पहुँच गया, खूब पेट भरके चक्की, कैरी की सब्जी और पूडियां खाई और बिना उससे मिले लौट आया. हिम्मत कोई दुकान पर थोड़ी मिलती थी कि ले आता पाव भर.
कई साल बाद एक जाना पहचाना नंबर दिखा फोन पर, उठाया और बात की तो उसने कहा "अगर ये दो बच्चे न होते तो अभी तेरे शहर में होती मैं सब छोड़ कर". आज मैं खाली हाथ नहीं था, मैंने वक़्त की दुकान से हिम्मत खरीद ली थी. बड़े रोब से कहा "आ जा, बहुत जगह और हिम्मत है अब मुझमें". वो ज़ोर से हँसी और फिर धीरे से कहा "तूने शुरुआत का शब्द नहीं सुना क्या? 'अगर'. अब तो बहुत दूर आ गयी मैं. मुझे उसी वक़्त तुम्हारी याद आ गयी बहुत दूर कितना दूर होता है ।